सच तो हो ना तुम? (Hindi)
PoetrySaurabh Kumar
"Sometimes I feel this was all a dream..."
तुम्हारी ये जो मुस्कान है,
सच है या है कोई फरेब?
जब देखो नज़रों के सामने आ जाती है।
चलों, छोड़ो, जानें दो;
तुम तो सच हो ना?
तो आते क्यों नहीं नज़रों के सामने?
फिलहाल तो केवल सपनों में है दस्तक तुम्हारी,
सच तो हो ना तुम?क्या कहा?
तुम्हारी ये जो बातें हैं,
बातें हैं या महज़ यादें हैं मेरी;
जो बार बार दुहराता हूँ मैं,
'ओ', 'अच्छा ठीक है', 'जाती हूँ: दुहराता हूँ मैं;
इन शब्दों को भी,
कि आखिर मतलब क्या हैं छिपा इनमें?
खैर, होता है प्यार कम जतानें से-कहा था तुमने।
वैसे सच तो हो न तुम?क्या कहा?
और ये जो तुम हो,
मेरे साथ हो या अपने में ही गुम हो?
जब देखों ओझल हो जाती हो;
फिर ढूंढता रहता हूँ मैं तुम्हे बस।
क्या वजह चाहिए अब बातों के लिए?क्या कहा?
आखिर,सच तो हो न तुम?
या फिर यूं कहूँ-
"सच में तो हो न तुम;साथ मेरे?"