काले मेघा, काले मेघा, प ानी तो बरसाओ
PoetryAshu Tiwari, Yuv Raj
Two people's take on the same title. Read the winning entries of Intra IIT Cultural and Literary Meet.
In this heartfelt poem, the Earth asks the clouds to bring rain, sharing the sadness of a dry and barren land. The poem joyfully describes how rain makes everything happy in nature, bringing life and colour back to the world. This literary work garnered the first prize at Fiesta - Intra IIT Cultural and Literary Meet in 2022.
काले मेघा, काले मेघा, पानी तो बरसाओ ना ।
क्या देख रहे तुम, धरा-शब्द, अब पास जरा आओ ना ॥
न जाने तुम बिन, गगनकोष से कितनी सूखी शाम हुई ।
कितने ख्वाबों में तुम्हें देख, मैं तुमसे यूँ अनजान हुई ॥
जब सूर्य-रश्मि से तपती मैं, तुझको अहसास नहीं आता ।
यूँ इस सूखे से मौसम में, मुझको ये कौन सताता ॥
देख रहे हो तुम बिन कितनी, गलियाँ ये हैरान हुई ।
तुम आये न मुझसे मिलने, कितनी सुबहों से शाम हुई ॥
तुम आओ तो देखो उनको, जो सोच रहे कब आओगे तुम ।
ये विष-बंजर जो फैला है, उसकी भी प्यास बुझाओ तुम ॥
अब दूर हुआ सुख-चैन सदा, बस पास अब आ जाओ तुम ।
तुम दूर करो भी इंतज़ार, अब न इतना तड़पाओ तुम ॥
क्या तुम्हें पता ये प्यार शब्द भी आता जब हो आते तुम ।
क्या एक नज़र में ही, कितनों के प्रियतम बन जाते हो तुम ॥
क्या तुम्हें पता ये मयूर नृत्य भी तो तुमसे ही लोभित है ।
एक तुम्हारे आने से ये जग कितना सुशोभित है ॥
आ गए अश्रु अब नयनों में, अब तो यूँ ना रुलाओ तुम ।
अब छोड़ जरा दो हठ अपनी, और पास जरा आ जाओ तुम ।
काले मेघा, काले मेघा, पानी तो बरसाओ तुम…
-Ashu Tiwari
This poem paints a picture of a world longing for rain. With genuine emotion, the verses ask the clouds to quench the thirst of both humans and nature. It garnered the second prize at Fiesta - Intra IIT Cultural and Literary Meet in 2022.
सूख गयी नदियां, छिप गए नाले,
मुरझा गए वे फूल, जो थे कभी मतवाले ।
वर्षा देखे मानो एक अरसा हो गया,
बड़े-बुजुर्ग भी बोले, ये कैसा मसला हो गया ।
पशु-पक्षियों का हुआ है बुरा हाल,
चारों दिशाओं में मानो मचा है बवाल ।
हे भगवान! हमें इस कदर न सताओ,
काले मेघा, काले मेघा, पानी तो बरसाओ ॥
न जाने हरियाली को किसकी नजर लग गई,
खेत-खलिहान तो सूखे, फसलें भी नष्ट हो गई ।
दोपहर की गर्मी का आतंक फैला है,
जो कभी नहीं था डरता आज वह भी सहमा है ।
नहीं देखा था कभी दर्ज का रूप इतना डरावना,
हो जाएँ वह शांत, हर जान की यही है प्रार्थना ।
पलकें बिछाएं जो इंतज़ार में बैठे हैं, उन्हें एक दर्शन दे जाओ,
काले मेघा, काले मेघा पानी तो बरसाओ ॥
धीरे-धीरे सब लोग नींद से जाग रहे हैं,
पानी की खोज में इधर-उधर भाग रहे हैं ।
जल-प्रदूषण, वृक्ष-कटाई जैसी समस्याओं को अब है हमने जाना,
जब पढ़ाया प्रकृति ने पाठ, तभी सभी ने इसे जाना ।
जो की थी गलतियाँ पहले, यह है उन्हीं का अंजाम,
इसी जीवन में भुगतना पड़ेगा, कर्म है इसका नाम ।
यूँ रूठो ना हमसे, अब कृपया मान जाओ,
काले मेघा, काले मेघा, पानी तो बरसाओ ॥
-Yuv Raj