चीज़ों को आसान रखना ही सबसे मुश्किल है।
Op-EdYuv Raj
This essay explores the art of tackling seemingly daunting tasks by dissecting them into manageable components. It delves into the paradox that while breaking down the work may make it appear less intimidating, the intricate nature of each smaller task demands significant patience and effort, challenging preconceived notions of simplicity.
"आसान!", यह शब्द देखने में और सुनने में जितना सरल प्रतीत होता है, जीवन में उसका उपयोग करना उतना ही कठिन है। बचपन से हमें यह सिखाया जाता है कि मुश्किल से मुश्किल कार्य मिनटों में हो सकते है अगर हम उन्हें आसान एवं सहज तरीकें से करें। लेकिन जीवन में कई अनुभवों के बाद ही हम यह सीखते हैं कि कार्य को आसान तरीके से करना ही सबसे मुश्किल है। कहने को तो साइकिल चलाना बहुत आसान है, बस बैठकर अपना संतुलन बनाना है, और पैडल मारना है। परन्तु, एक ५ वर्ष का बच्चा जो अभी-अभी साइकिल चलाना सीख रहा हो, वो ही हमें बता सकता है कि यह कितना मुश्किल कार्य है। एक प्रश्न जो हमारे मन में उठना बहुत लाज़मी है, वह यह है कि आखिर चीज़ों को आसान रखने का मतलब क्या है? और हम कैसे चीज़ों को आसान रख सकते है? चीज़ों को आसान रखने का सरल मतलब यह है कि किसी भी बड़े एवं मुश्किल कार्य को, जिसे करने में हमे भय, झिझक या आत्मविश्वास की कमी महसूस होती हो, हम उसे बहुत सारे छोटे-छोटे एवं सरल कार्यों में तोड़ दें, जिससे उन्हें करने में हमें आसानी हो।
आइए इसे एक उदहारण से समझते हैं। आए दिन हम खुद को ऐसी परिस्थितियों में पाते हैं, जहां हमें एक साथ कई कार्य शीघ्र करने होते है। जैसे कि मान लीजिए आपको एक तरफ अपना कमरा साफ़ करना है, कपड़े धोने है, कक्षा-कार्य पूरा करना है, तो दूसरी तरफ आने वाली परीक्षा के लिए तैयारी भी करनी है। अब कुल मिलाकर तो यह सब करना हमें बहुत मुश्किल लगेगा लेकिन अगर हम एक बार में एक काम को पकड़े तथा उसे पूरे मन से करें, तो हमें निश्चित ही ये सब करने में न ज्यादा समय लगेगा और न ही ज्यादा थकावट होगी। एक बड़ा हवाई जहाज़ बनाना बहुत मुश्किल काम है परन्तु जब बहुत सारे लोग साथ मिलते हैं और अपने-अपने ज्ञान एवं कुशलता के आधार पर उस जहाज़ के छोटे-छोटे पुर्ज़े बनाते हैं, तो वही कार्य बहुत आसान लगने लग जाता है। बाद में उन्हीं पुर्ज़ों को जोड़कर एक बड़ा जहाज़ तैयार हो जाता है। जीवन में भी चीज़ों को आसान रखने का यही तरीका है। किसी भी बड़ी मुश्किल का सीधा हल ढूंढ़ने से अच्छा यह है कि हम उसे छोटी-छोटी मुश्किलों में तोड़े तथा उन छोटी-छोटी मुश्किलों का आसान हल ढूंढें।
लेकिन, अगर यह कार्य इतना ही सरल एवं सहज है, तो हम सभी ऐसा करने में असक्षम क्यों हो जाते हैं? इसका सरल-सा उत्तर यह है कि चीज़ें जितनी सरल प्रतीत होती हैं, वे उतनी सरल होती नहीं। भले ही अब हवाई जहाज़ को कई सौ लोग बना रहे हो, परन्तु हमें इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि एक छोटे से छोटे पुर्ज़े को बनाने में भी अत्यधिक कुशलता एवं धैर्य की जरूरत होती है। बाद में हर उस पुर्ज़े को सही तरीके से अपनी जगह पर जोड़ना, अपने आप में ही एक मुश्किल पड़ाव है। जब हम चीज़ों को आसान करने के लिए छोटे-छोटे भागों में बाँट देते हैं, तब हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती यह हो जाती है कि अगर किसी भी पड़ाव पर हमसे कोई गलती हो गई, तो हम सही रास्ते से भटक जाएंगे और अपने निर्धारित लक्ष्य पर नहीं पहुंच पाएंगे। चीज़ों को आसानी से करने के लिए एक और महत्वपूर्ण चीज़ का ख्याल रखना चाहिए - वह यह है कि हम हर कार्य धैर्य एवं सहज मन से करें। अक्सर हम एक जैसे कामों पर लगे रहते हैं, हमारा मन चंचल हो उठता है तथा इधर-उधर के ख्यालों में खो जाता है। इससे हम पूर्ण रुपी मुश्किल कार्य को और मुश्किल बना देते हैं।
तो इन सब बातों से यह निष्कर्ष तो अवश्य निकलता है कि चीज़ों को आसान रखना भले ही मुश्किल हो पर नामुमकिन नहीं है। मानव जाति का चाँद पर पहुँचना, हज़ारों मीलों का फासला चंद मिनटों में तय कर पाना, औषधि-विज्ञान में आगे बढ़ना, बड़ी-बड़ी महामारियों से खुद की रक्षा कर पाना इस बात का सबूत है कि चाहे कार्य कितना भी कठिन क्यों न हो अगर हम उसे आसान तरीके से पूरा ध्यान लगाकर करें, तो वह अवश्य ही पूरा हो जाता है। इस निबंध का अंत मैं निम्न पंक्तियों से करना चाहूंगा-
"ये मुश्किलें तुझे हरा नहीं सकती,
ये रातें तुझे डरा नहीं सकती,
रख भरोसा खुद पर और बढ़ जा आगे,
क्योंकि अगर तू ठान ले एक बार तो, ये कायनात भी तुझे झुका नहीं सकती ।"